Former Lok Sabha deputy speaker Kariya Munda
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महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर शुरू आंदोलन के बीच आदिवासियों ने धर्मांतरित आदिवासियों को जनजाति के तहत मिल रहे आरक्षण का दर्जा खत्म करने की मांग शुरू हुई है। मुंबई में जनजाति सुरक्षा मंच के बैनर तले कोंकण के आदिवासियों ने भव्य रैली निकाली और नारा दिया कि ‘जो नहीं भोलेनाथ का, वह नहीं मेरी जाति का’।
जनजाति सुरक्षा मंच की ओर से आयोजित रैली में लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष व झारखंड के आदिवासी नेता करिया मुंडा ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि हमारी संस्कृति और परंपरा को छोड़कर धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को जनजाति के तहत मिले आरक्षण का दर्जा खत्म किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि देशभर में आदिवासियों के धर्मांतरण का बड़ा षडयंत्र शुरू हुआ है, जिससे आदिवासी संस्कृति खतरे में है। सूर्य, चंद्र, वनस्पति, प्राणी, जल, वायु और आकाश की पूजा करने वाले आदिवासी सनातनी हैं, लेकिन ईसाई मिशनरी आदिवासियों के देवाताओं को शैतान बताती हैं। इसे रोका जाना चाहिए। मुंडा ने कहा कि हमारी संस्कृति का संरक्षण तभी हो सकता है, जब धर्मांतरित आदिवासियों की डिलिस्टिंग हो। आदिवासियों ने रविवार को शिवाजी पार्क से लेकर वरली के जंबोरी मैदान में मोर्चा निकाला, जिसमें 25 हजार से अधिक आदिवासी समुदाय के लोग शामिल हुए। जनजाति सुरक्षा मंच के नेता विवेक करमोडा ने कहा कि हमारी मांग वर्षों पुरानी है। वर्ष 1969 में संसदीय समिति ने धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षण का लाभ नहीं दिए जाने के संबंध में प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन पूर्वोत्तर राज्य के दो ईसाई मुख्यमंत्रियों के दबाव में विधेयक वापस ले लिया गया था।
एक करोड़ आदिवासियों का हुआ धर्मांतरण- करिया मुंडा
करिया मुंडा ने कहा कि देशभर में 3.50 फीसदी आबादी आदिवासियों की है। देश में 8.50 करोड़ आदिवासी हैं, जिसमें से 80 लाख लोगों का ईसाई धर्म में और 12 लाख आदिवासियों का इस्लाम में धर्मांतरण हो चुका है। इतनी ही संख्या में छुपे तौर पर धर्मांतरण किया गया है। मुंडा ने कहा कि धर्मांतरण से जुड़े लोग उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाते हैं, जबकि मूल आदिवासियों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। मुंडा ने कहा कि अनुसूचित जाति में धर्मांतरित लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता, लेकिन आदिवासी आरक्षण की धारा-342 में ऐसा उल्लेख नहीं है।